
कुचलने वाले के हाथों में ,
एक महकता मेह्काता गुलाब हूँ मैं ...
किसी का दूध, किसी की दवा तो किसी की शराब हूँ मैं...
दोस्तों के शेह्र में, तनहा बेहिसाब हूँ मैं...
जीससे लीपट कर पूरी क्र्लेते हें परवाने अपनी जिन्दगी,
अपने ही नूर की मारी, उस शमा की आग हूँ मैं ...
जो ख़ुद जलकर रोशन करता है हर महफिल,
आँचल में अंधेरे छुपाये, वही चीराग हूँ मैं...
एक आवारा हवा का झोंका , एक बूँदभर आब हूँ मैं ...
कहीँ कुछ देहेकते शोले थे, उनको छुपाती,
कुछ झुलसी मायूस राख हूँ मैं...
जिसको छूने से जल्जायेंगी उँगलियाँ तुम्हारी,
वही शीशी में बंद रंगीन तेज़ाब हूँ मैं ...
किसी मनि्दर का सुकून, किसी भीड़ की आवाज़ हूँ मैं...
कभी आँख का आँसू, कभी उनको पोछता हाथ हूँ मैं ...
एक पाख रूह को ढकता चुपता , एक मैला सा नकाब हूँ मैं...
ख़ुद के अन्दर झान्क्के देखो ,
नम कई हैं ... इश्क... मोहब्बत ... औरत हूँ मैं.
ैं इबादत हूँ मैं ...
नायाब हूँ मैं...
1 comment:
iTNA SOCHNA MATH, KE SAR FAT JAAYE,
ZAMEEN PE CHALI AAO, DEVIYAAN BAHUT HAI AASMAAN MEIN,.
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